Kishanganj Military Camp: बिहार के सीमावर्ती किशनगंज जिले में प्रस्तावित भारतीय सेना के सैनिक कैंप को लेकर इन दिनों राजनीतिक और सामाजिक हलचल तेज़ हो गई है। कोचाधामन और बहादुरगंज अंचल में चिन्हित जमीन के अधिग्रहण का विरोध अब स्थानीय स्तर से निकलकर पटना और दिल्ली तक पहुंच चुका है। एक ओर केंद्र और राज्य सरकार इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा अहम कदम बता रही हैं, तो दूसरी ओर स्थानीय ग्रामीण, जनप्रतिनिधि और विपक्षी दल इसे जनविस्थापन और आस्था पर चोट करार दे रहे हैं।
प्रशासन द्वारा कोचाधामन अंचल के सतभीट्टा और कन्हैयाबाड़ी मौजा तथा बहादुरगंज अंचल के शकोर और नटवापाड़ा मौजा में करीब 250 एकड़ जमीन चिन्हित की गई है। यहां भारतीय सेना का सैनिक स्टेशन स्थापित किया जाना प्रस्तावित है। सरकार का तर्क है कि बांग्लादेश सीमा से सटे इस क्षेत्र में सैन्य ढांचे को मजबूत करना रणनीतिक रूप से बेहद जरूरी है।
लेकिन जमीन अधिग्रहण के खिलाफ स्थानीय स्तर पर जबरदस्त विरोध उभर आया है। ग्रामीणों का कहना है कि प्रस्तावित इलाके में सैकड़ों परिवार दशकों से रह रहे हैं। यहां ईदगाह, मस्जिद और कब्रिस्तान जैसे धार्मिक स्थल भी मौजूद हैं, जिनका स्थानांतरण न सिर्फ व्यावहारिक रूप से कठिन बल्कि भावनात्मक और सामाजिक रूप से संवेदनशील मुद्दा है। लोगों को आशंका है कि अधिग्रहण की स्थिति में वे बेघर हो जाएंगे और उनकी धार्मिक आस्था से जुड़े स्थल भी खतरे में पड़ जाएंगे।
Kishanganj Military Camp: संसद में गूंजी आवाज
इस मुद्दे की गूंज संसद तक पहुंच गई है। लोकसभा में शून्यकाल के दौरान कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने सरकार से मांग की कि सैनिक कैंप के लिए किशनगंज में किसी वैकल्पिक और कम आबादी वाले स्थान का चयन किया जाए। उन्होंने कहा कि जिस जमीन को अभी चिन्हित किया गया है, वह किसानों की है और घनी आबादी वाला इलाका है, जिससे आम लोगों को भारी परेशानी होगी।
पटना की राजनीति भी इस मसले पर गरमा गई है। एआईएमआईएम के सभी पांचों विधायक जमीन अधिग्रहण के विरोध में सक्रिय हो गए हैं। विधायक तौसीफ आलम हाल ही में इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मिले थे। पार्टी के विधायकों सरबर आलम और तौसीफ आलम ने किशनगंज के जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर अधिग्रहण प्रक्रिया पर आपत्ति दर्ज कराई है। उनका कहना है कि वे सेना का पूरा सम्मान करते हैं, लेकिन जिस जमीन को चुना गया है, वहां घनी आबादी और कई धार्मिक स्थल मौजूद हैं। ऐसे में सरकार को वैकल्पिक स्थान की तलाश करनी चाहिए।
Kishanganj Military Camp: कांग्रेस ने सरकरा को घेरा
कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल से बयान जारी किया है कि सैनिक कैंप के नाम पर गरीब किसानों की जमीन ली जा रही है, जबकि वह इलाका पहले से घनी आबादी वाला है।
इस स्थानीय विरोध के समानांतर, राष्ट्रीय स्तर पर तस्वीर बिल्कुल अलग है। भारत ने अपनी पूर्वी सीमा की सुरक्षा को लेकर बड़े पैमाने पर सैन्य पुनर्गठन शुरू कर दिया है। बांग्लादेश से लगी सीमा और विशेष रूप से सिलीगुड़ी कॉरिडोर — जिसे ‘चिकन नेक’ कहा जाता है — को अभेद्य बनाने की दिशा में तीन नए फॉरवर्ड सैन्य बेस स्थापित किए जा रहे हैं। यह वही 22 किलोमीटर चौड़ा संवेदनशील गलियारा है, जो उत्तर-पूर्व के सात राज्यों को देश की मुख्य भूमि से जोड़ता है।

Kishanganj Military Camp: किशनगंज में सैन्य कैंप प्रस्तावित
असम के धुबरी के पास लाचित बोरफुकन मिलिट्री स्टेशन, बिहार के किशनगंज और पश्चिम बंगाल के चोपड़ा में नए फॉरवर्ड बेस प्रस्तावित हैं। चोपड़ा बेस बांग्लादेश सीमा के बेहद करीब है, जहां से सीमा पार तक निगरानी संभव है। इन सैन्य ठिकानों को सिर्फ कैंप नहीं बल्कि रैपिड डिप्लॉयमेंट फोर्स, पैरा स्पेशल फोर्सेज, इंटेलिजेंस यूनिट और अत्याधुनिक सर्विलांस सिस्टम से लैस रणनीतिक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है।
सिलीगुड़ी कॉरिडोर में पहले ही राफेल फाइटर जेट्स, ब्रह्मोस मिसाइलें और S-400 एयर डिफेंस सिस्टम तैनात किए जा चुके हैं। ड्रोन, सैटेलाइट मॉनिटरिंग और बहु-स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था के जरिए पूरे इलाके को हाई अलर्ट ज़ोन में तब्दील किया जा रहा है।
Kishanganj Military Camp: बांग्लादेश की क्या है चाल
इसी बीच पड़ोसी बांग्लादेश भी सिलीगुड़ी कॉरिडोर से सटे अपने लालमोनिरहाट एयरबेस को दोबारा सक्रिय करने की तैयारी में है। ब्रिटिश काल में बने इस एयरबेस को फिर से चालू करने के पीछे चीन की भूमिका की अटकलें भी लगाई जा रही हैं। बांग्लादेश सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमां हाल ही में इस एयरबेस का दौरा कर चुके हैं, जहां नए हैंगर और सैन्य ढांचे का निर्माण किया जा रहा है।
इन तमाम घटनाक्रमों के बीच किशनगंज में सवाल यही है कि क्या राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थानीय जनभावनाओं के बीच कोई संतुलित समाधान निकल पाएगा, या फिर यह मुद्दा आने वाले दिनों में और बड़ा राजनीतिक संघर्ष बनकर उभरेगा।
Input: Girindra Nath Jha
