Kishanganj Army Camp: पहले खाना, फिर सुरक्षा; ये क्या बोल गए ओवैसी के MLA

Kishanganj Army Camp: बिहार का सीमावर्ती जिला किशनगंज सामरिक दृष्टि से देश के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में शामिल माना जाता है। यह जिला नेपाल, बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल के चिकननेक (सिलीगुड़ी) कॉरिडोर के बेहद करीब स्थित है, जिसे भारत की रणनीतिक ‘लाइफलाइन’ कहा जाता है। चिकननेक कॉरिडोर देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों को शेष भारत से जोड़ने वाला एकमात्र संकरा भू-भाग है, और इसकी सुरक्षा में किसी भी प्रकार की चूक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है।

Kishanganj Army Camp: सोशल मीडिया पर बहस

हाल के दिनों में बांग्लादेश में भारत-विरोधी प्रदर्शनों और सोशल मीडिया पर चिकननेक कॉरिडोर को काटने जैसी धमकियों के बीच सुरक्षा एजेंसियां अतिरिक्त सतर्कता बरत रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी सैन्य ढांचे को मजबूत करना समय की मांग है, ताकि किसी भी संभावित खतरे का त्वरित और प्रभावी जवाब दिया जा सके। इसी पृष्ठभूमि में किशनगंज जिले के कोचाधामन और बहादुरगंज अंचल में प्रस्तावित सेना कैंप को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से एक अहम कदम माना जा रहा है।

Kishanganj Army Camp: कहां बनना है आर्मी कैंप

प्रस्ताव के अनुसार बहादुरगंज के नटुआपारा पंचायत और कोचाधामन के बड़ीजान पंचायत क्षेत्र में लगभग 260 एकड़ भूमि पर आर्मी कैंप स्थापित किया जाना है। प्रशासनिक स्तर पर इसे सीमा सुरक्षा और रणनीतिक तैनाती को सुदृढ़ करने की दिशा में महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। हालांकि, इस प्रस्ताव के सामने आते ही स्थानीय राजनीति और सामाजिक स्तर पर इसका विरोध भी तेज हो गया है।

Kishanganj Army Camp: AIMIM विधायक का बयान

किशनगंज में प्रस्तावित आर्मी कैंप का विरोध सबसे मुखर रूप से असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM की ओर से सामने आया है। पार्टी के विधायक तौसीफ आलम ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वे किशनगंज में आर्मी कैंप नहीं बनने देंगे। उनका तर्क है कि जिस जमीन पर कैंप प्रस्तावित है, वह उपजाऊ कृषि भूमि है और इसके अधिग्रहण से सैकड़ों किसानों की आजीविका पर सीधा असर पड़ेगा।

Kishanganj Army Camp: किसानों की हक मारने की बात

विधायक तौसीफ आलम ने कहा कि लगभग 200 एकड़ से अधिक खेतिहर जमीन को सैन्य कैंप के लिए चिन्हित किया गया है। उनके अनुसार यह जमीन धान, मक्का और पटसन जैसी फसलों की खेती के लिए उपयोग में लाई जाती है, जो किशनगंज जिले की मुख्य कृषि उपज हैं। उन्होंने दावा किया कि यदि यह जमीन चली गई तो कम से कम 100 किसान सीधे तौर पर प्रभावित होंगे और उनके परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा। उनका कहना है कि सरकार के नियमों के अनुसार जहां सक्रिय खेती होती है, वहां इस प्रकार के निर्माण नहीं होने चाहिए।

Kishanganj Army Camp: सरकार को दिया गया तर्क

AIMIM विधायक ने यह भी कहा कि वे और एक अन्य विधायक इस मुद्दे को लेकर प्रशासन के पास जा चुके हैं और लिखित आवेदन सौंप चुके हैं। उनकी मांग है कि किशनगंज में प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज को अलग स्थान पर बनाया जाए और आर्मी कैंप की योजना को रद्द किया जाए या फिर उसे किसी गैर-कृषि भूमि पर स्थानांतरित किया जाए। उनका तर्क है कि हर प्रखंड में सरकारी या अनुपयोगी भूमि उपलब्ध है, जहां इस तरह का कैंप बनाया जा सकता है।

Kishanganj Army Camp: क्या निकलेगा नतीजा

विरोध के बीच यह बहस और गहरी होती जा रही है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थानीय किसानों की आजीविका के बीच संतुलन कैसे साधा जाए। एक ओर सुरक्षा विशेषज्ञ सीमावर्ती क्षेत्र में सेना की मौजूदगी को अनिवार्य मानते हैं, वहीं दूसरी ओर स्थानीय जनप्रतिनिधि किसानों के हितों की अनदेखी न करने की बात कह रहे हैं।

फिलहाल जिला प्रशासन और राज्य सरकार की ओर से इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय आना बाकी है। सुरक्षा एजेंसियों की जरूरतों और स्थानीय जनभावनाओं के बीच किस तरह का समाधान निकलेगा, इस पर पूरे क्षेत्र की निगाहें टिकी हुई हैं।

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