सभी दोषियों को भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच जेल से कोर्ट लाया गया। फैसले के दौरान अदालत परिसर में तनाव का माहौल रहा। रामगोपाल की पत्नी रोली भी कोर्ट में मौजूद थीं। सजा सुनाने के बाद उनका कहना था कि उन्हें न्याय मिला है और उनके पति की आत्मा को शांति मिलेगी।
अदालत ने यह निर्णय 13 महीने 28 दिनों की सुनवाई के बाद दिया। सुनवाई के दो दिन पहले ही कोर्ट ने 13 आरोपियों में से 10 को मॉब लिंचिंग, हत्या और अन्य गंभीर धाराओं में दोषी ठहराया था, जबकि खुर्शीद, शकील और अफजल को पर्याप्त साक्ष्य न होने पर बरी कर दिया गया था।
दुर्गा विसर्जन जुलूस के दौरान हुआ था विवाद
यह पूरी घटना 13 अक्टूबर 2024 को महराजगंज बाजार में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान शुरू हुई थी। जुलूस में बज रहे डीजे को रोकने को लेकर मतभेद हुए और देखते ही देखते विवाद पथराव, आगजनी और फायरिंग में बदल गया। इसी दौरान रेहुवा मंसूर निवासी रामगोपाल मिश्रा अब्दुल हमीद के घर की छत पर चढ़ गए और वहां लगा हरा झंडा हटाकर भगवा झंडा लगा दिया।
जांच के अनुसार, इसी बात से नाराज होकर सरफराज ने रामगोपाल को गोली मारी और अन्य आरोपियों ने उन्हें अंदर खींचकर बेरहमी से पीटा, जिससे उनकी मौत हो गई।
मौत की खबर से भड़की थी भीड़, दो दिन रहा तनाव
रामगोपाल की मौत की जानकारी फैलते ही क्षेत्र में तनाव बढ़ गया। भीड़ ने सड़क जाम कर विसर्जन रोका और रातभर विरोध प्रदर्शन चलता रहा। अगले दिन स्थिति और बिगड़ गई। आक्रोशित लोगों ने एक बाइक शोरूम और एक निजी अस्पताल में आग लगा दी।
स्थिति संभालने के लिए लखनऊ से एसटीएफ चीफ और एडीजी लॉ एंड ऑर्डर अमिताभ यश को मौके पर भेजा गया। उन्होंने पुलिस बल के साथ मोर्चा संभाला और भीड़ को तितर-बितर किया।
हिंसा और हत्या के इस मामले में करीब एक हजार लोगों पर विभिन्न धाराओं में मुकदमे दर्ज किए गए थे। हत्या के मुख्य मामले में 13 व्यक्तियों को अभियुक्त बनाया गया था, जिनमें अब अदालत ने 10 को दोषी करार दिया है।
