Nawada Durga Mandir: सिंहासन पूजा की अनोखी परंपरा और सदियों पुरानी आस्था का केंद्र

Nawada Mandir

Nawada Durga Mandir: बिहार के दरभंगा जिला के बेनीपुर प्रखंड के नवादा गांव स्थित प्रसिद्ध हयहट्ट देवी मंदिर में मां दुर्गा के सिंहासन की पूजा की अनूठी परंपरा सदियों से कायम है। नवरात्रा के दौरान यहां आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है। आम दिनों में भी मंदिर में पूजा-अर्चना को भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन चैती व शारदीय नवरात्र में देश–विदेश से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। नेपाल सहित मिथिलांचल के विभिन्न जिलों—दरभंगा, मधुबनी, सुपौल, सहरसा—से कलश स्थापना के दिन से ही भक्तों का तांता लगना शुरू हो जाता है। मान्यता है कि मां के सिंहासन की सच्चे मन से पूजा करने वाले की हर मनोकामना पूरी होती है।

Nawada Durga Mandir: अंकुरित भगवती के रूप में प्रकट हुई थीं मां

स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार हयहट्ट देवी ‘अंकुरित भगवती’ हैं। किवदंती है कि लगभग चार सौ वर्ष पहले जहां आज भव्य मंदिर स्थित है, वह स्थान घने जंगलों से आच्छादित था। प्रतिदिन जंगल में चरवाहे अपनी गायों को चराने लाते थे। इसी दौरान एक गाय प्रतिदिन एक विशेष स्थान पर दूध बहा देती थी। यह रहस्य जानने के बाद ग्रामीणों ने उस स्थान को साफ कराया। वहां से एक दिव्य आभा महसूस हुई और लोगों ने लकड़ी और फूस से एक छोटी झोपड़ी बनाकर पूजा शुरू कर दी। समय बीतने के साथ श्रद्धालु बढ़ते गए और फिर ग्रामीणों ने सामूहिक चंदा इकट्ठा कर वर्तमान भव्य मंदिर का निर्माण कराया।

नवादा गांव में सदियों पहले हयहट्ट राजा का ‘डीह’ हुआ करता था। इसी ऐतिहासिक संबंध के कारण देवी को हयहट्ट भगवती नाम दिया गया। आज भी गांव में कई पुरानी संरचनाएं और स्थान इस इतिहास की याद दिलाते हैं।

Nawada Durga Mandir: सिंहासन पूजा की अनोखी परंपरा

अन्य मंदिरों की तरह यहां देवी की प्रतिमा की पूजा नहीं होती, बल्कि देवी के सिंहासन की ही आराधना की जाती है। ग्रामीण बताते हैं कि मां का यह सिंहासन चमत्कारिक है और भक्तों की सारी मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। प्रतिदिन माता के सिंहासन को ताजे फूलों, मालाओं और धूप–दीप से सजाया जाता है। मंदिर परिसर में सुबह और शाम आरती का आयोजन होता है, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल होते हैं।

स्थानीय निवासियों का मानना है कि देवी की कृपा से पूरे क्षेत्र में सुख-शांति बनी रहती है। नवरात्रा में यहां नौ दिनों तक विशेष पूजा, भजन-कीर्तन और कन्या पूजन का आयोजन होता है। कई परिवार अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर मां को चुनरी, नारियल व प्रसाद चढ़ाते हैं।

किवदंती: जब मां की मूर्ति गांव से दूसरे स्थान चली गई

सिंहासन पूजा की परंपरा के पीछे एक रोचक कथा जुड़ी है, जो आज भी लोगों की आस्था को गहरा करती है। कहा जाता है कि सैकड़ों वर्ष पहले बहेड़ी प्रखंड के हाबीड़ीह गांव का एक भक्त प्रतिदिन कमला नदी पार कर नवादा पहुंचकर मां भगवती की पूजा करता था। एक दिन अचानक वह बीमार पड़ गया। कमजोरी के कारण जब वह मंदिर पहुंचा तो मुख्य द्वार पर ही बेहोश होकर गिर पड़ा। भक्तों को चिंता हो गई कि अब वह मां की पूजा कैसे करेगा।

कथा अनुसार, मां भगवती ने उस भक्त को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि वे चाहें तो देवी की मूर्ति को अपने गांव ले जा सकते हैं। अगली सुबह भक्त ने सिंहासन से मां की मूर्ति उठा ली और अपने गांव ले गए। आज भी हाबीड़ीह गांव में हयहट्ट देवी की वही मूर्ति स्थापित है और वहां भी भव्य पूजा होती है।

जब नवादा के लोगों को इस बात की खबर मिली तो उन्होंने मूर्ति वापस लाने का निर्णय लिया। परंतु उसी रात मंदिर के तत्कालीन पुजारी दामोदर गोसाई को देवी ने स्वप्न दिया। स्वप्न में मां ने कहा कि नवादा के लोग उनके सिंहासन की ही पूजा करें, वे उसी में प्रसन्न रहेंगी। इसके बाद नवादा के ग्रामीणों ने उसी निर्देश का पालन करते हुए मूर्ति वापस लाने का विचार त्याग दिया और सिंहासन पूजा की परंपरा शुरू हो गई।

Nawada Durga Mandir: नवरात्रा में उमड़ता है श्रद्धा का सैलाब

नवरात्रा के दौरान मंदिर परिसर में भव्य सजावट की जाती है। गांव के युवा मंडल पूरे क्षेत्र में साफ-सफाई, संगीत और प्रकाश-सज्जा की जिम्मेदारी संभालते हैं। स्थानीय महिलाओं की मंडलियां सुबह–शाम सामूहिक भजन और गीत गाती हैं। सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन मंदिर परिसर में भक्तों की भारी भीड़ रहती है। कतारें इतनी लंबी हो जाती हैं कि कई बार श्रद्धालुओं को घंटों इंतजार करना पड़ता है।

नेपाल से आने वाले श्रद्धालु बताते हैं कि यहां आने से मन को अलग ही शांति मिलती है। कई परिवार अपनी पीढ़ियों से हर नवरात्रा यहां पहुंचते रहे हैं। दूरदराज से आए लोगों के लिए ग्रामीण प्रसाद, जलपान और विश्राम की भी व्यवस्था करते हैं, जो इस क्षेत्र की सामाजिक एकजुटता की मिसाल है।

Nawada Durga Mandir: आस्था और इतिहास का संगम

नवादा स्थित हयहट्ट देवी मंदिर सिर्फ पूजा का स्थान ही नहीं, बल्कि मिथिलांचल की सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है। यहां की परंपराएं, लोक कथाएं और श्रद्धालुओं की अटूट आस्था इस मंदिर को विशेष बनाती हैं। सिंहासन पूजा की यह अनोखी परंपरा सदियों पुरानी है और आज भी उतने ही विश्वास के साथ निभाई जा रही है।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *