एक ऐसा मंदिर, जहां कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन होता है ध्वजारोहण

एक ऐसा मंदिर, जहां कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन होता है ध्वजारोहण

Makrampur Bajrangbali Sthan: देशभर में आमतौर पर रामनवमी को ध्वजारोहण होता है, लेकिन इस देश में बजरंगबली का एक ऐसा भी मंदिर है, जहां रामनवमी को नहीं, बल्कि कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन ध्वजारोहण होता है। सुनने में यह काफी नया है, लेकिन सच है।  बिहार के दरभंगा जिला में यह अद्भुत मंदिर स्थित है। दरभंगा जिला के बेनीपुर प्रखंड के मकरमपुर गांव में स्थित बजरंगबली के मंदिर में भादव कृष्ण पक्ष नवमी को ध्वजारोहण होता है। चलिए, इस अद्भुत मंदिर के बारे में बताते हैं।

Makrampur में कैसे हुई ध्वजारोहण की शुरुआत?

मकरमपुर में स्थित बजरंगबली मंदिर के बारे में कहा जाता है कि काफी समय पहले गांव में हैजा फैल गया था। हैजा फैलने से काफी लोगों की मौत हो गई थी, लोग चिंतित थे, उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या किया जाय। इसी बीच मंदिर के पुजारी को स्वप्न आया कि बजरंगबली को ध्वजारोहण करने से गांव में फैले हैजा का निदान हो सकता है। इसके बाद ग्रामीणों ने ध्वजारोहण किया, तब से यह प्रथा चलती आ रही है और भादव कृष्ण पक्ष नवमी को ध्वजारोहण होता रहा है।

जमीनी लड़ाई में मिली थी जीत

वहीं, कई लोगों का कहना है कि काफी समय पहले गांव के जमींदार और दरभंगा राज घराने के बीच जमीनी लड़ाई चल रही थी, जब इस लड़ाई में ग्रामीणों की जीत हुई तो खुशी से ध्वजारोहण किया, जिसके बाद यह प्रथा जारी रही और अब तक चल रही है। गांव के हर घर से ध्वजा अर्पित किया जाता है।

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कब से जारी है ध्वजारोहण की प्रथा

बता दें कि मंदिर में ध्वजारोहण करने की परंपरा करीब 200 वर्षों से चली आ रही है। पहले एक ध्वजा से इसकी शुरुआत हुई थी। अब हर साल आठ से 10 हजार ध्वजारोहण किया जाता है। यह भक्तों की आस्था है कि दिन प्रतिदिन यहां श्रद्धालुओं की तादाद बढ़ती ही जा रही है। यहां बिहार के करीब-करीब हर जिले के लोग पहुंचते हैं। साथ ही नेपाल से भी लोग आते हैं। मान्यता है कि यहां आए भक्त कभी उदास होकर नहीं जाते है। यहां बजरंगबली सभी भक्तों की मुराद पूरा करते हैं।

क्या है पूजा की विधि?

ध्वजारोहण करने की विधि की बात करें तो सबसे पहले बांस (चाभ- बांस की किस्म) को काट कर लाया जाता है। इसके बाद इसे अच्छे से साफ करके सिंदूर, पिठार (भीगे हुए चावल को पीस कर बनाया गया लेप) लगाया जाता है। फिर बजरंगबली का नाम लेकर जनेऊ बांधा जाता है और बांस में लाल पताखा लगाया जाता है। इसके बाद इसे मंदिर प्रांगण में जाकर भगवान को अर्पित करना होता है। वहां मौजूद लोग इसे मिट्टी में डालते हैं। इसके बाद बजरंगबली को भोग लगाने के लिए चूड़ा, दही, चीनी, लड्डू, केला, पेड़ा, मिठाई आदि लेकर मंदिर प्रांगण जाया जाता है। इसके बाद ब्राह्मण और कन्या को भोजन करवाया जाता है। तत्पश्चात पूजा संपन्न मानी जाती है।

एक ऐसा मंदिर, जहां कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन होता है ध्वजारोहण
एक ऐसा मंदिर, जहां कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन होता है ध्वजारोहण

कैसे पहुंचे मकरमपुर?

मकरमपुर पहुंचने के लिए सबसे सुलभ सड़क मार्ग है, जो दरभंगा जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर पूरब की ओर है और दरभंगा से यहां के लिए गाड़ियां मिल जाती है। यह गांव दरभंगा से 30 किलोमीटर पूरब और बेनीपुर से चार किलोमीटर उत्तर की ओर स्थित है। यहां हर साल भादव कृष्ण पक्ष नवमी को ध्वजारोहण होता है। फेसबुक ग्रुप

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