लखनऊ में स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने ठगी के एक बड़े मामले का पर्दाफाश करते हुए तीन शातिर ठगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें एक महिला भी शामिल है। यह गिरोह खुद को प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के अधिकारी बताकर लोगों को ठगने का काम कर रहा था। हाल ही में इस गिरोह ने एसजीपीजीआई (SGPGI) की एक डॉक्टर से 2 करोड़ रुपये की ठगी की थी। गिरफ्तारी के बाद STF गिरोह के सदस्यों से पूछताछ कर रही है और उनकी अन्य आपराधिक गतिविधियों की भी जांच कर रही है। इस गिरफ्तारी से डिजिटल ठगी के मामलों में एक बड़ी सफलता मानी जा रही है।
सरकारी अधिकारी बनकर ठगी, करोड़ो की थी चोरी
गिरोह का ठगी का तरीका बेहद शातिर और सुनियोजित था। ठगों ने सरकारी एजेंसियों जैसे प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के अधिकारियों के रूप में खुद को प्रस्तुत किया। उनका मुख्य उद्देश्य पीड़ित को डराकर उनसे पैसे ऐंठना था। गिरोह के सदस्य खुद को उच्च सरकारी अधिकारी, जैसे कि ED या CBI का अधिकारी बताकर लोगों से संपर्क करते थे। ठग पहले पीड़ित को यह विश्वास दिलाते थे कि उनके खिलाफ कोई गंभीर कानूनी मामला चल रहा है, जैसे मनी लॉन्ड्रिंग या टैक्स चोरी। एक बार पीड़ित उनके जाल में फंस जाता, तो वे उसे जल्द से जल्द भुगतान करने के लिए दबाव डालते थे। गिरोह के पास फर्जी बैंक खाते और डिजिटल वॉलेट होते थे, जिनमें वे ठगी की रकम जमा कराते थे। ठग डिजिटल माध्यमों का भी बड़े पैमाने पर उपयोग करते थे, जैसे कि व्हाट्सएप, ईमेल, और अन्य मैसेजिंग प्लेटफॉर्म। वे फर्जी लिंक भेजते थे जिनके जरिए पीड़ित की निजी जानकारी, बैंक डिटेल्स आदि हासिल की जाती थी।
सुनियोजित ऑपरेशन, एसटीएफ ने शातिर ठगों को लखनऊ में दबोचा
गिरोह की गिरफ्तारी एक सुनियोजित ऑपरेशन के तहत हुई। एसजीपीजीआई की डॉक्टर से 2 करोड़ रुपये की ठगी के बाद, पीड़ित डॉक्टर ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिससे यह मामला सामने आया। लखनऊ की स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत जांच शुरू की और ठगों को पकड़ने के लिए एक रणनीति तैयार की।
जांच के दौरान, एसटीएफ ने गिरोह के काम करने के तरीके और उनके कॉल रिकॉर्ड्स की गहन छानबीन की। अधिकारियों ने आरोपियों की डिजिटल गतिविधियों और फर्जी बैंक खातों को ट्रैक करना शुरू किया। उन्होंने गिरोह के फोन नंबरों और डिजिटल वॉलेट्स की मॉनिटरिंग की, जिससे उनकी लोकेशन और पहचान की जानकारी मिली।
गिरफ्तारी की मुख्य कार्रवाई लखनऊ के विभिन्न इलाकों में की गई। एसटीएफ की टीम ने हरिप्रिया प्रधान, जितेंद्र यादव, और ज्ञानचंद्र को अलग-अलग स्थानों से दबोच लिया। इस दौरान पुलिस ने सावधानी बरती ताकि आरोपी भाग न सकें। गिरफ्तारी के समय उनके पास से कई फर्जी पहचान पत्र, मोबाइल फोन, और डिजिटल उपकरण बरामद हुए, जो ठगी के काम में इस्तेमाल किए जाते थे।
फर्जी ED और CBI अधिकारी बनकर 2 करोड़ की ठगी
इस गिरोह ने एसजीपीजीआई (SGPGI) की एक डॉक्टर को निशाना बनाया था। उन्होंने डॉक्टर को फोन करके बताया कि उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का गंभीर मामला दर्ज है और इसे सुलझाने के लिए उन्हें तुरंत 2 करोड़ रुपये जमा करने होंगे। डर और दबाव में आकर डॉक्टर ने ठगों के बताए फर्जी खातों में 2 करोड़ रुपये ट्रांसफर कर दिए। गिरोह ने डॉक्टर को धमकाने के लिए फर्जी सरकारी आदेश और नकली पहचान का सहारा लिया था, जिससे डॉक्टर को कोई संदेह न हो और वे ठगों के झांसे में आ जाएं।
अब क्या होगी आगे की जांच
एसटीएफ इस समय आरोपियों से गहन पूछताछ कर रही है ताकि ठगी के पूरे नेटवर्क का पता लगाया जा सके। जांच में ये भी सामने आया है कि गिरोह के सदस्य अन्य राज्यों में भी सक्रिय थे और वहां भी कई लोगों को ठग चुके हैं। टीम ठगों के बैंक खातों और डिजिटल वॉलेट्स की भी जांच कर रही है ताकि ठगी की पूरी रकम का पता लगाया जा सके।
आरोपियों की पहचान
हरिप्रिया प्रधान: गिरोह की मुख्य सदस्य, जो अपनी समझदारी और लोगों को बातों में फंसाने की कला के लिए जानी जाती है।
हरिप्रिया ने कई बार खुद को ईडी की अधिकारी बताकर लोगों को फंसाया है।जितेंद्र यादव: गिरोह का मास्टरमाइंड, जो ठगी की योजनाओं को बनाता था और अपने साथियों को निर्देश देता था।
जितेंद्र पहले भी कई बार पुलिस की गिरफ्त में आ चुका है, लेकिन हर बार नए तरीके से ठगी करने में सफल रहता था।ज्ञानचंद्र: गिरोह का तीसरा सदस्य, जो तकनीकी विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है। वह फर्जी दस्तावेज़ और डिजिटल माध्यमों के जरिए ठगी के काम को अंजाम देता था।
इस मामले के बाद पुलिस ने आम जनता से अपील की है कि वे किसी भी तरह की फोन कॉल, ईमेल या संदेश के माध्यम से आने वाले धमकाने वाले संदेशों से सावधान रहें। किसी भी अनजान व्यक्ति द्वारा पैसे की मांग किए जाने पर तुरंत पुलिस को सूचित करें।